मेघाच्छादित अंबर में
नहीं होते दृष्टिगत
चाँद, तारे व उल्काएँ
छिप जाता प्रखर रवि भी
नहीं हो पाती रंगों की पहचान तक
निरावृत्त आकाश में ही तो
होते सभी आभामय।
खुले आकाश से ही तो मिलते हैं
हमारी आँखों को
उजालों के संदेश।
चलो तेज करें अब
विचारों की आँधियों को
ताकि उड़ जाएँ उनके संग
जड़ता के काले मेघ, और
खुला - खुला बना
रहे सदा
हमारे मन का आकाश।
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