आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Sunday, May 4, 2014

समय आ गया है (2011)

समय आ गया है कि अब
जीवन के सारे अर्ध विरामों को
बदल डाला जाए पूर्ण विरामों में
क्योंकि पूर्ण विराम ही होते है
मंजिलों तक पहुँचने के परिचायक।

समय आ गया है कि अब
मारी जाय एक जोरदार फूंक
वहाँ - वहाँ,
जहाँ - जहाँ से सुलगकर उठ रहा है काला धुआँ
ताकि धू - धूकर जल उठें
सच्चाई की अग्नि - ज्वाला में
संदिग्धता व अविश्वास के सारे केन्द्र।
समय आ गया है कि
अब मोड़ लिया जाए मुँह हर उस गली से
जहाँ बस निर्ममता से ही सामना होता है हमारा
चाहे उन गलियों में बसते हों
अपने कितने ही करीबी और नामचीन लोग।
समय आ गया है कि अब
छोड़ दिया जाए
सारी बिन पतवार की नावों को
नदी की तीव्र मंझधार में
बह जाने के लिए अनियंत्रित ही
दृष्टि - पथ से दूर कहीं

ताकि अब तैर कर पहुँचा जा सके
नदी के पार वाले लक्ष्य तक
धारा को अपनी बाजुओं की ताक़त से काट।

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