नई सुबह
है,
मस्त हवा
है,
गुणा-भाग सब पस्त
हुआ है,
बदली - बदली जनता सारी
बदला - सा हर एक
युवा है।
परिवर्तन की
बाट जोहती
दुनिया सारी
अब लगती
है,
सोच नई
है,
जोश नया
है,
बदला - सा अंदाज़े - बयां है।
गढ़ने को
नूतन परिभाषा
धर्म - कर्म, नैतिकता सबकी,
बूढ़ा पीपल
कुचियाया है
डाल - डाल प्रस्फोट हुआ
है।
घर में
कीचड़, बाहर कीचड़,
कीचड़ मलने
की आदत
से
छुटकारा पाने
को व्याकुल
थोथेपन का
दुर्ग ढहा
है।
अब स्वीकार
नहीं है
विघटन
भाव - विभेद व्यर्थ का
सारा,
कठिन काल
में अभिनव -
पथ का
अर्थ - बोध आसान हुआ
है।
ग्रहण मिटा
है,
नव -
किरणों की
आभा में
उम्मीद जगी
है,
पराभूत करने
पीड़न को
बौनों ने
आकाश छुआ
है।
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