बेटी से बहू बनने की प्रक्रिया में
कैसे - कैसे मानसिक झंझावातों से
गुजरती है लड़की।
अपनों से एकाएक कटकर अलग होती,
कटने की उस तीखी पीड़ा को
अपनों से एकाएक कटकर अलग होती,
कटने की उस तीखी पीड़ा को
दाम्पत्य - बंधन के अनुष्ठानों में संलग्न हो
शिव के गरल - पान से भी ज्यादा सहजता से
आत्मसात करने का प्रयत्न करती,
लड़की वैसे ही विदा होती है
लड़की वैसे ही विदा होती है
माँ - बाप की ड्योढ़ी से
जैसे आकाश का कोई उन्मुक्त पंछी
उड़कर समाने जा रहा हो किसी अपरिचित पिंजड़े में
अपने नवेले जीवन - साथी के पंख से पंख मिलाता
उड़कर समाने जा रहा हो किसी अपरिचित पिंजड़े में
अपने नवेले जीवन - साथी के पंख से पंख मिलाता
किसी नूतन स्वप्नालोक की तलाश में।
अपने बचपन की समस्त स्वाभाविकता
अपने किशोरपन की सारी चंचलता
अपने परिवेश में संचित समूची भावुकता
सबको एकाएक भुलाकर
अपने नए परिवार में एकाकार होती लड़की
हर दम बाहर से हँसती और अंदर से रोती है।
लड़की का पहनावा, बोल - चाल, हाव - भाव
सब कुछ नित्य नए परिजनों के स्कैनर पर होता है
अपने बचपन की समस्त स्वाभाविकता
अपने किशोरपन की सारी चंचलता
अपने परिवेश में संचित समूची भावुकता
सबको एकाएक भुलाकर
अपने नए परिवार में एकाकार होती लड़की
हर दम बाहर से हँसती और अंदर से रोती है।
लड़की का पहनावा, बोल - चाल, हाव - भाव
सब कुछ नित्य नए परिजनों के स्कैनर पर होता है
माँ-बाप के घर से मिले संस्कार - कुसंस्कार
कपड़े - लत्ते, गहने, सामान
सब पर उनका अपना-अपना दृष्टिकोण होता है
सब पर उनका अपना-अपना दृष्टिकोण होता है
जिनका लड़की के कानों तक पहुँचाया जाना
अनिवार्यता होती है, और
उन पार्श्व - वक्तव्यों की अन्तर्ध्वनि तक को
पचा जाना लड़की का कर्तव्य।
अपने नए परिवार की परंपराओं के साथ ताल - मेल बिठाती,
अपने नए जीवन - सहचर के साथ
अनिवार्यता होती है, और
उन पार्श्व - वक्तव्यों की अन्तर्ध्वनि तक को
पचा जाना लड़की का कर्तव्य।
अपने नए परिवार की परंपराओं के साथ ताल - मेल बिठाती,
अपने नए जीवन - सहचर के साथ
दाम्पत्य की अभिनव यात्रा पर निकल पड़ी लड़की
हमेशा सशंकित रहती है,
चिन्तित होती है,
फिर भी निरन्तर आशावान बनी रहती है
हमेशा सशंकित रहती है,
चिन्तित होती है,
फिर भी निरन्तर आशावान बनी रहती है
अपने भविष्य
के प्रति।
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