दुख तब
नहीं होता
जब
'कोई'
अपने बीच
से जाता
है
दुख तब
होता है
जब
'कुछ'
अपने बीच
से जाता
है
वह जो साथ होकर भी
नहीं बन पाता 'कुछ'
हमारे लिए उसका जाना
कुछ नहीं होता।
पर वह जो हमारे साथ रहकर
'बहुत कुछ' बन जाता है
उसका जाना तो
ढेरों दुख देता ही है
हमारे दुख की मात्रा ही
उसके अस्तित्व की असली पहचान होती है
जो हमारे बीच से जाता है।
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