आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, May 3, 2014

गठबंधन -1 (2004)

गठबंधन बनाने की उतावली में
एक दल के नेता ने दूसरे दल के नेता से कहा -
"तुम खुजली आने पर मेरी पीठ खुजाना
मैं भी जरूरत पड़ने पर तुम्हारी पीठ खुजाऊँगा!

चूँकि हम दोनों ही धुर - विरोधी दलों से हैं
तथा केर - बेर का संग है हमारा - तुम्हारा
अत: कोई बात नहीं,
तुम किसी दिन अपने अंगरक्षकों से
मेरा कुरता भी फड़वा देना,
तुम्हारा वोट - बैंक मर्दानगी देखकर कुप्पा होगा
और मैं भी अपने वोटरों की सहानुभूति बटोरूँगा,
लेकिन खुजली आने पर मुझे जरूर याद करना, मित्र!

कदली को कांटों की चुभन बर्दाश्त करने में
कोई परेशानी नहीं होगी मेरे यार!
किंतु खुजली की अंदरूनी छटपटाहट
हम कभी नहीं झेल सकते,
चाहे वह कुरसी पाने की खुजली हो,
अथवा कुरसी जाने की खुजली हो!

हम कोई बंदर तो हैं नहीं
कि खुद - बखुद मिटाएँगे अपनी खुजली!
आज जब हम इतने सारे लोगों को
एक दूसरे की खुजली मिटाते हुए देख रहे हैं
तो में ऐसा करने में शर्म भी कैसी?

आपने देखा ही होगा कि
प्रतिपक्ष के बड़े - बड़े आदर्शवादी नेता तक
संसद में "शर्म करो! शर्म करो!" के नारे लगाकर
बाहर मंत्री के सामने
"सर, मेरा एक परसनल मैटर है प्लीज!" कहकर गिड़गिड़ाते हैं,
फिर हम लोगों को एक - दूसरे की खुजली मिटाने की रणनीति पर
मिल - जुलकर अमल करने में झिझक कैसी?

मित्र! आओ!
राजनीति के इस नए दौर में
हम भी एक नया गठबंधन बनाएँ
चाहे अपनी खुजली मिटाने के लिए

अथवा दूसरों की खुजली बढ़ाने के लिए!

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