वे हर वक्त मुनाफे का दम भरते हैं
क्योंकि वे लाशों का व्यापार करते हैं
राजनीति के ऐसे नकली सिक्के
हिन्दुस्तान भर में चलते हैं।
वे हमेशा सफेदपोशी किए घूमते हैं
कुरसी को चूमते हैं
झूठ बोलने में शरमाते नहीं
गद्दी की लाज रखने के लिए
दो - एक जानें ले लेने में घबराते नहीं।
कुछ बनते हैं किसानवादी
रोज एक रैली से करते हैं
अपने अस्तित्व की मुनादी।
क्या अजीब चोंचले हैं,
बबूल की
डालों पर
बया के
घोंसलें हैं।
काम के
गरीब हैं,
बातों के
चतुर,
कितने अजीब
हैं नेताओं
के सुर।
'एशिया बयासी'
रोज़ होता
है संसद
में,
बड़े - बड़े
पहलवान बैठते
हैं दंगल
में,
चीखते – चिल्लाते हैं,
शोरगुल मचाते
हैं,
हमारे दु:ख - दर्दों
में
लुत्फ़ भी
उठाते हैं,
संसद में
प्रवेश की
अब योग्यताएँ भी
बदलेंगीं,
जो होंगे
रुस्तमे - हिंद,
अव्वल दर्ज़े
के मसखरे,
नामचीन हिस्ट्री
- शीटर,
पहुँचे हुए
दलाल,
उत्कृष्ट श्रेणी
के चापलूस,
अब उन्हीं
को मिलेंगे
राष्ट्रीय दलों
के टिकट।
अब सब
यही आंकेंगे
-
कौन कितना जिताऊ है?
कौन कितना टिकाऊ है?
और कौन कितना कमाऊ है?
इनसे तंग होना मना है,
इनकी हरकतों से दंग होना मना है,
इनके विरुद्ध
सच्चाई की
जंग होना
भी मना
है।
सस्ती है
जान, मँहगाई
की मंडी
में
नाच रही
जनता इन
मदारियों की
डंडी में
इंद्रजाल रचकर कर दी है नजरबंदी,
परदे की आड़ में
तस्वीर कितनी गंदी।
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