चौमास में उगी
गेहूँ की सूजियों की तरह
उग आए
युवा सीने पर
उत्तरदायित्व के बाल
कांप उठे
उनके शीश पर
बेरोज़गारी के अश्रु-तुहिन
भावी ठिठुरन की कल्पना में
कांप उठा
शिशु अनुभव
भुरभुरी मिट्टी की
पेशानी चूमकर
दंड पेलते हुए चने के अंकुर - सा
निरर्थक फूलों से लदी
कद्दू की बेल - सी
बढ़ती गईं जीवन की अपेक्षाएँ
आशाओं के प्रतंतु फैला - फैलाकर
आंगन के सड़ियल से छप्पर पर।
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